सेना और शिक्षक
न इन्हे गर्मी लगती न ठंडी, न लगता इन्हे बरसात,
लू या हीट वेव से आखिर इनको क्या आघात?
20 में कोरोना वायरस ने सबको हिला दिया था,
उसमें भी इन महामानव ने ड्यूटी खूब किया था,
कौन है ये महामानव इनका नाम भी आओ जाने,
कितना महत्व रखता इनका काम भी आओ जाने,
ये महामानव मिल जाएंगे गांव के विद्यालय में,
सरकारी स्कूल के मास्टर सब इनको कहते है।
एक सिरफिरे अधिकारी ने इनको यत्न दिया है,
क्या इन महामानवों ने अपराध जघन्य किया है?
गर्मी बढ़ी बहुत तो बच्चों खातिर बंद किया स्कूल,
और शिक्षक की बात आई तो ये सारी भाषा गए भूल,
कुछ न इसपर बोल सके ये सिरफिरे अफसर सारे,
मजबूरन सारे ही लगाते जय जय पाठक के नारे।
कुछ महान अक्ल के दुश्मन तर्क हैं ऐसा देते,
बॉर्डर पर भारत के सैनिक हर पल खड़े है रहते,
क्या शिक्षक विद्यालय में न आठ घंटे दे सकते?
क्यों आखिर ये मास्टर साहब इतने में ही थकते?
उनके लिए प्रश्न है मेरा एक बड़ा ही छोटा,
कैसे कैसे तर्क है लाते बिन पेंदी के लोटा,
सेना का तो काम है होता आतंकी से लड़ना,
इसलिए 24 घंटा उनको खड़ा है पड़ता रहना,
यदि देश की सेना का शिक्षक से तुलना करते,
तो क्या बच्चों की तुलना हम आतंकी से कर दें।
काम अलग है दोनों के ही तो तुलना फिर कैसा?
छात्र पढ़ाना आतंकी से न लड़ने के जैसा।
सुबह सुबह जो 6 बजे से विद्यालय चलता है,
तुम्ही बताओ क्या ऐसे में पढ़ने का मन करता है?
भूखे पेट है बच्चा आता भूखे आते मास्टर,
माफ करो, ऐसे न सुधार सकता शिक्षा का स्तर!
– आदित्य कुमार
(बाल कवि)