निः स्वार्थी वृक्ष

एक वृक्ष जो भूख मिटाता था,
जो मीठे फल बरसाता था,
गर्मी–सर्दी, वर्षा–तूफान,
क्षण भर भी न घबराता था,

जलती पकती दोपहरी में वो सबका बना सहारा था,
चौबीस घंटे यूं खड़ा, कभी कुछ कहता नही बेचारा था
उसके फल को जब तोड़ा तो,
एक ऊंफ तक नही निकाला वो,
बोला बस भूख मिटा लो तुम,
बैठो कुछ पल ठंडा लो तुम,
है तेज धूप, बैठो राही,
दोपहरी यहीं बिता लो तुम।

उस वृक्ष की बात थी खास बड़ी,
शायद हो तुम्हे विश्वास नहीं,
ना बारिश में वो डरता था,
वो तूफानों से लड़ता था,
सर्दी का कोई प्रभाव नहीं,
गर्मी में ठंडक पाने का,
करता कोई प्रस्ताव नहीं!
फल के बदले कोई स्वार्थ नही,
ना छांव के बदले मांग कोई।

जिंदा है तब भी सेवा में,
मरने के बाद रसोई में,
बोलो निः स्वार्थ भाव लेकर,
इस वृक्ष सा दूजा कोई है?

            –आदित्य कुमार
                 (बाल कवि)

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