जातिवादी मानसिकता
एक बड़ी सी दीवार,
दो वर्गों के बीच,
एक तरफ की जाति ऊंची,
तो दूसरी तरफ की नीच।
एक पार वो जिनका छुआ शायद श्रापित हो जाता है,
जी हां वही छोटी जाति वाला कहलाता है,
बेशक इनका छुआ पानी भी श्रापित है,
पर इनके भैंस की दूध आ हाहा अमृत है,
बेशक अगर ये हमारे खाते समय आ जाए,
तो वो खाना असुद्ध हो जाता है,
पर इन्ही की खेत का फसल,
देवता कहलाता है,
अगर ये छू देते है तो कितने ही बाल्टी पानी से नहाया जाता है,
पर तब चूं भी नही करते ऊंची जाति के साहब जब अस्पताल में किसी छोटी जात का खून इन्हे चढ़ाया जाता है।
जातिवाद है पर बस उनके फायदे के लिए
बाकी तो यह हमेशा चाहते हैं
की छोटी जाति वाला इनके कायदे से जिए
-आदित्य कुमार
(बाल कवि)