सब करेंगी बेटियां
सब करेंगी बेटियां
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जब पढ़ेंगी बेटियां कुछ तब करेंगी बेटियां
जो जो तुम कर सकते हो वो सब करेंगी बेटियां
कुछ नया कर जाने की जब बेटी की बुद्धि ठनी
तब किरण बेदी कोई पहली महिला अफसर बनी
जब गणित के प्रश्नों का उत्तर था कंप्यूटर महज
तब कठिन प्रश्नों का उत्तर बेटी देती थी सहज
थी शकुंतला जिन्हें सब कैलकुलेटर कहते थे
गणना जिनकी देखकर सारे अचंभित रह गए
ज्ञान के बलबूते तो बेटियां कर गई नाम अमर
क्या कभी कोई भूल पाएगा लता मंगेशकर?
है मिला मौका इन्हें जब जब किसी भी काम में,
रच दिया है बेटी ने इतिहास अपने नाम से
पर न जाने कुछ घरों में कैसा ये अभिशाप है,
आज भी बेटी का चौखट से निकलना पाप है
मूर्खों की अवधारणा है ऐसी बेटी के प्रति
क्या करेंगी पढ़ के ये? है बिन पढ़े अच्छी भली!
वे ना जाने कितने ही है कल्पना को मारते
कितने किरण बेदी के तन से वर्दियां उतारते
कितनी ही शकुंतला की बुद्धि घुट कर रह गई
कितनी मनु की वीरता चौखट के भीतर मर गई
कितने लता मंगेशकर के सुर सिसक कर रह गए
ना जाने कितनी बेटियों के युग बिदक कर रह गए
जिदंगी की जंग अकेले लड़ सकी न बेटियां
क्योंकि कितने ही घरों में पढ़ सकी न बेटियां
पर है उस अवधारणा को अब बदलने का समय
छोड़ ओछी मानसिकता कर नए युग का उदय
बेटी के भी हाथ सौंपो राष्ट्र के कमान को
देखना क्या कुछ वो देंगी अपने हिंदुस्तान को।।
– आदित्य कुमार
(बाल कवि)