शहीद दिवस (कविता)
लाख कोशिश हुई मगर ये इंकलाब रुका नहीं
चूम गए फंदे को लेकिन सिर कभी झुका नहीं।
राष्ट्रहित में प्राण को बलिदान कर गए वीर वो
आत्मा को कर अमर जो छोड़ गए शरीर को
न मौत का कोई भय उन्हें न जिंदगी का मोह था
रज से बने थे तन मगर कण कण में उनके लौह था
जो आज शहीद दिवस लिख गए तिथिपत्र की कपाल पे
वो राजगुरु-सुखदेव-भगत सिंह भारती के लाल थे।
– आदित्य कुमार
(बाल कवि)
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शब्दार्थ:-
1. रज – मिट्टी
2. लौह – लोहा
3. तिथिपत्र – कैलेंडर
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