स्वयं शपथ
मैं अविनाशी का अमर अंश
श्री राम, कृष्ण, विष्णु का वंश
न नशा झुका पाए मुझको
न भोग लुभा पाए मुझको
न मन में कोई आकर्षण हो
न गलत दृश्य का दर्शन हो
न भेदभाव आए मन में
न अहंकार हो जीवन में
न भाग्य भरोसे बैठूंगा
निज हस्तरेखा मैं बदलूंगा
न मैं लकीर का हूं फकीर
संघर्ष से सफल हो शरीर
मां पिता के वचनों का आदर
नतमस्तक हो मानू सादर
पग कभी धरे निज नहीं विपथ
ये है मेरा एक स्वयं शपथ।
– आदित्य कुमार
(बाल कवि)
# शब्दार्थ
* हस्तरेखा – हथेली की लकीरें
* विपथ – गलत रास्ता